कबीर दोहावली भाग 2 | 20 कबीर के दोहे अर्थ सहित

कबीर दोहावली भाग 2 में हम कबीर के 20 दोहों का अगला संग्रह लेकर आए हैं, जिनका अंग्रेजी अर्थ है। 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत कबीर अपने गहन और व्यावहारिक दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं, जिन्हें ‘दोहे’ के नाम से जाना जाता है। ये दोहे गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक सत्य को सरल और सुलभ तरीके से व्यक्त करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम कबीर के 20 दोहों और उनके अंग्रेजी अर्थों के बारे में जानेंगे।

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कबीर के दोहे आध्यात्मिकता, नैतिकता और मानव स्वभाव पर उनके विचारों को दर्शाते हैं। उनके दोहे अक्सर धार्मिक रूढ़िवादिता को चुनौती देते हैं और कर्मकांडों की तुलना में व्यक्तिगत अनुभव और आंतरिक भक्ति के महत्व पर जोर देते हैं। नीचे, हम उनके कुछ सबसे प्रभावशाली दोहों के अर्थों पर चर्चा करेंगे।

कबीर दोहावली भाग 2 | 20 कबीर के दोहे अर्थ सहित

कबीर के दोहे 21 – 25

21.
जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल ।
तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥ 21 ॥

अर्थ: अगर कोई तुम्हारे लिए काँटे बोता है, तो तुम उसके लिए फूल बोओ। मतलब, अगर कोई तुम्हारे साथ बुरा करे, तो भी उसके साथ अच्छा करो। यही एक अच्छे इंसान का चरित्र है। इसलिए, अगर तुम दूसरों के लिए फूल बोओगे, तो तुम्हारे आस-पास फूल ही फूल होंगे। अगर कोई काँटे बो रहा है, तो वह काँटों से ही घिरा रहेगा। इस दोहे में कबीर दास ने अच्छे दिल वाले होने पर ज़ोर देने की कोशिश की है। अगर आप अच्छे दिल वाले हैं और अच्छे विचार रखते हैं, तो आप हमेशा अच्छाई से घिरे रहेंगे।

22.
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥ 22 ॥

अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि मनुष्य के रूप में यह जन्म दुर्लभ है। आपको हर बार मानव शरीर नहीं मिलता। हिंदू धर्म के अनुसार, मानव शरीर प्राप्त करने से पहले विभिन्न प्राणियों के रूप में 84 लाख जन्म होते हैं। इसलिए, मनुष्य के रूप में जन्म लेना अनमोल और दुर्लभ है। यह उसी तरह है जैसे पेड़ के पत्ते एक बार गिरते हैं, एक ही शाखा पर नहीं जुड़ते या बढ़ते नहीं हैं। इसलिए, यह जन्म अनमोल है, और आप कभी नहीं जानते कि आपका अगला जन्म क्या होगा या आपका पिछला जन्म क्या था। इसलिए, अपने जीवन को अच्छे गुणों के साथ जिएँ। इसे केवल खाने और सोने में बर्बाद न करें।

23. 
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥ 23 ॥

अर्थ: कबीर दास इस दोहे में अंतिम सत्य, मृत्यु का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि जो भी इस धरती पर जन्मा है या आया है, उसे एक दिन जाना ही है। चाहे वह राजा हो, गरीब हो या फ़कीर। कोई सिंहासन पर बैठकर जाता है, तो कोई जंजीरों में जकड़ा हुआ। रास्ता कोई भी हो, एक दिन सभी को मरना ही है और यही अंतिम सत्य है।

24.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ 24 ॥

अर्थ: जो भी योजना बनाई है उसे आज ही पूरा कर लेना चाहिए, उसे कल पर मत छोड़ो। जो भी आज करना है, उसे अभी करो। अनिश्चितता का व्यवहार कभी नहीं पता चलता; कभी भी कुछ भी हो सकता है। इसलिए, जो योजना बनाई है, उसे करना शुरू करो। वरना, सब कुछ पलों में बर्बाद हो सकता है, तुम कब करोगे?
इसका सीधा सा मतलब है, अपना समय बर्बाद मत करो, जो भी योजना बनाई है उसे करो, और यही उसे करने का सबसे अच्छा समय है।


25.
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥ 25 ॥

अर्थ: इस दोहे में दास कबीर भीख मांगने के बारे में अपने विचार बताते हैं। वे कहते हैं कि भीख मांगना मौत के बराबर है। इसलिए किसी को भी भीख नहीं मांगनी चाहिए। वे कहते हैं कि एक अच्छा गुरु आपको सिखाएगा कि भीख मांगने से मरना बेहतर है। यह दोहा कबीर के भीख मांगने के प्रति असहयोग को दर्शाता है।

कबीर के दोहे 26 – 30

26.
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग ।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥ 26 ॥

अर्थ: जहाँ क्रोध है, वहाँ विपत्ति और संकट है। जहाँ संदेह है, वहाँ रोग है। कबीर कहते हैं कि इन 4 रोगों (क्रोध, विपत्ति, संदेह और रोग) का एक ही समाधान है और वह है धैर्य। कबीर इस दोहे में कहते हैं कि धैर्य ही वह गुण है जो जीवन की इन 4 समस्याओं को खत्म कर सकता है।

27.
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥ 27 ॥

अर्थ: भ्रम और छाया दोनों के गुण एक जैसे हैं। यहाँ भ्रम से तात्पर्य जीवन की इच्छाओं (धन, समृद्धि आदि) से है। अतः जीवन के ये भ्रम और छाया एक ही चीज़ हैं। यह रहस्य कोई विरला ही जानता है। छाया और इच्छा दोनों ही हमेशा उस व्यक्ति से दूर भागती हैं जो उन्हें पकड़ने की कोशिश करता है। बस इच्छाएँ पूरी नहीं हो सकतीं, जैसे छाया को नहीं पकड़ा जा सकता।

28.
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान ।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥ 28 ॥

अर्थ: इस दोहे में कबीर मनुष्य जीवन का अर्थ समझने को कहते हैं। वे कहते हैं कि भगवान ने तुम्हें यह जन्म अच्छे उद्देश्य से दिया है और तुम इसे सोकर बर्बाद कर रहे हो। हे लापरवाह मनुष्य, अपने जीवन का अर्थ समझो और पहचानो। अपने जीवन में उद्देश्य पाने का प्रयास करो। अपने आप को पहचानो और इस जीवन को बर्बाद मत करो।

29.
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ॥ 29 ॥

अर्थ: कबीर दास फिर से जीवन की अनिश्चितता के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं, इस शरीर का कोई भरोसा नहीं है क्योंकि यह एक पल में नष्ट हो सकता है। हर साँस पर भगवान का नाम लें और यही एकमात्र प्रयास है जो आप कर सकते हैं। कबीर दास हर साँस के साथ भगवान को याद करने के लिए कहते हैं।

30. 
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच ।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥ 30 ॥

अर्थ: गाली या बुरे शब्द ही झगड़े, दर्द और दुख का कारण बनते हैं। जो अपनी हार स्वीकार कर लेता है और बुरे शब्दों का प्रयोग करना छोड़ देता है, वही संत है और जो विषय पर अड़ा रहता है और जीतना चाहता है, वह नीच व्यक्ति है। इस दोहे में कबीर दास स्वीकार करके आगे बढ़ने पर जोर देते हैं।

कबीर के दोहे 31 – 35

31.
दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय ।
बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥ 31 ॥

अर्थ: कमज़ोर को मत सताओ, उसका श्राप बड़ा होगा। जब कमज़ोर लोगों को परेशान किया जाता है या प्रताड़ित किया जाता है, तो वे प्रतिरोध नहीं करते या प्रतिकार नहीं करते, बल्कि चुपचाप श्राप दे देते हैं और कबीर दास कहते हैं कि इस तरह का श्राप बड़ा होता है और इसका प्रभाव भी अधिक होता है।
यहाँ कबीर दास एक लोहार की धौंकनी
1कबीर दोहावली भाग 2 | 20 कबीर के दोहे अर्थ सहित, ThePoemStory - Poems and Stories, Poems and Stories का प्रसंग देते हैं, जो मरे हुए जानवर की खाल से बनी होती है और उसमें प्राण नहीं होते। कबीर दास कहते हैं, वैसे तो लोहार की धौंकनी में प्राण नहीं होते, लेकिन उसमें जो हवा चलती है, उससे लोहा पिघल जाता है। कमज़ोर आदमी का मौन श्राप भी ऐसा ही होता है।

 32.
दान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ 32 ॥

अर्थ: दान देने से धन नहीं घटता, जैसे नदियों का पानी नहीं घटता। यकीन न हो तो खुद आजमा कर देख लो। कबीर यही कहना चाहते हैं। कबीर दास कहते हैं कि दान देने से धन या संपत्ति नहीं घटती।
 

33.
दस द्वारे का पिंजरा, तामें पंछी का कौन ।
रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन ॥ 33 ॥

अर्थ: दस दरवाज़ों वाला एक पिंजरा है, कोई नहीं जानता कि कौन सा पक्षी के लिए है। कबीर दास जीवन के बारे में बात करते हैं। वह इस मानव शरीर को एक पिंजरे के रूप में मानते हैं जिसमें आत्मा के बाहर जाने के लिए 10 रास्ते हैं। आत्मा पक्षी है और इस शरीर के अंदर रहती है जिसमें 10 दरवाजे हैं। आत्मा एक दिन शरीर को छोड़ देगी और कोई नहीं जानता कि वह किस दरवाजे से बाहर निकलेगी। जब तक आत्मा शरीर के अंदर है, तब तक भ्रम की स्थिति बनी रहती है, हालाँकि, इस शरीर को छोड़ने के बाद, कोई आश्चर्य और भ्रम नहीं होता है।

यहाँ कबीर जीवन और मृत्यु के बारे में बात करते हैं। जीवन एक पिंजरे की तरह है और मृत्यु मुक्ति है।

34.
ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥ 34 ॥
 
अर्थ: ऐसे शब्द बोलो कि सुनने वाले लोग अभिभूत हो जाएं। वे प्रसन्न और मंत्रमुग्ध हो जाएं। ऐसे शब्द बोलो कि दूसरों को शांति मिले और खुद को भी शांति मिले।

35.
हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट ।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥ 35 ॥

अर्थ: यहाँ कबीर दास यह कहने की कोशिश करते हैं कि जहाँ लोग कम गुण और कम बुद्धि वाले हों, वहाँ न बोलें और न ही अपने विचार व्यक्त करें। यह हीरे को ऐसी जगह खोलने जैसा है, जहाँ उसकी पहचान या कीमत न हो। बेहतर है कि चुप रहें (हीरे की थैली बंद रखें) और अपने रास्ते पर चलते रहें।

जहाँ लोग आपके ज्ञान और बुद्धि को न पहचानें, ऐसी जगहों पर चुप रहना ही बेहतर है। बेहतर है कि आप अपने काम से काम रखें और अपने रास्ते पर चलें।

कबीर के दोहे 36 – 40

36.
कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार ।
साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥ 36 ॥

अर्थ: बुरे शब्द या शाप सबसे बुरे होते हैं, वे शरीर और आत्मा को जला देते हैं और नष्ट कर देते हैं। अच्छे शब्द पानी की तरह होते हैं, जो पवित्र अमृत की तरह गिरते हैं।

कबीर दास कहते हैं कि टेढ़े शब्द सभी को अंदर से जला देते हैं, जबकि अच्छे शब्द अमृत की तरह होते हैं और सभी को शांत करते हैं।

37. 
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥ 37 ॥

अर्थ: अगर आप अंदर से शांत हैं तो इस दुनिया में कोई भी आपका दुश्मन नहीं है। अगर हमारा मन शांत और संयमित है तो हम किसी को अपना दुश्मन नहीं मानते। अगर हम अपना अहंकार त्याग दें और सबके प्रति दया का भाव रखें तो दुनिया में कोई भी हमारा दुश्मन नहीं है। इसलिए सभी को अहंकार त्यागकर दया का मार्ग अपनाना चाहिए।h of mercy.

38.
मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय ।
मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय ॥ 38 ॥

अर्थ: यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें अपने कार्यों और शब्दों के प्रति सचेत रहना चाहिए। जब ​​हम दुनिया की समस्याओं के बारे में रोते हैं, तो हमें यह भी सोचना चाहिए कि हमारे शब्दों और कार्यों का क्या परिणाम हो सकता है।

39.
सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप ।
यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप ॥ 39 ॥

अर्थ: यह दोहा हमें सिखाता है कि साधु को जगाकर भगवान का नाम जपने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जबकि साकित (अज्ञानी व्यक्ति), सिंह (शेर) और साँप को सोते रहने देना बेहतर है क्योंकि उन्हें जगाने पर वे नुकसान पहुँचा सकते हैं।

40.
अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ ।
मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात ॥ 40 ॥

अर्थ: यह दोहा शराब के नुकसानों को दर्शाता है। इसमें बताया गया है कि शराब पीने से व्यक्ति में मूर्खता और अहंकार भर जाता है और वह इंसान से जानवर बन जाता है। शराब न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य को खराब करती है बल्कि उसकी आर्थिक स्थिति को भी खराब करती है।

Conclusion

कबीर के दोहे आत्मनिरीक्षण, विनम्रता और भक्ति के मूल्यों की कालातीत याद दिलाते हैं। इन शिक्षाओं को समझकर और अपने जीवन में लागू करके, हम अधिक शांति और पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि ये अनुवाद आपको कबीर की कविता की गहराई और सुंदरता की सराहना करने में मदद करेंगे।

  1. लोहार की धौंकनी ↩︎
कबीर दोहावली भाग 2 | 20 कबीर के दोहे अर्थ सहित, ThePoemStory - Poems and Stories, Poems and Stories

Keywords: कबीर दोहावली भाग 2, कबीर के दोहे 21 – 25, कबीर के दोहे 26 – 30, कबीर के दोहे 31 – 35, कबीर के दोहे 36 – 40, कबीर के दोहे



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