अकबर इलाहाबादी और उनकी शेरो शायरी

अकबर इलाहाबादी (1846-1921) उर्दू साहित्य के एक प्रमुख और लोकप्रिय शायर थे। उनका असली नाम सैयद अकबर हुसैन था और उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। अकबर इलाहाबादी अपने हास्य-व्यंग्यपूर्ण शायरी के लिए प्रसिद्ध थे, और उनके काव्य में समाज की सच्चाईयों का व्यंग्यात्मक चित्रण प्रमुखता से दिखाई देता है।

जीवन और शायरी का अंदाज़

अकबर इलाहाबादी का जीवनकाल ब्रिटिश राज और समाज में आए बदलावों से प्रभावित था। उनकी रचनाओं में ब्रिटिश शासन का विरोध और आधुनिकता की आलोचना झलकती है। उन्होंने अपने दौर के सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों पर तीखे कटाक्ष किए और इन पर व्यंग्य करते हुए अपनी कविताओं में सरल भाषा का प्रयोग किया।

विशेषताएँ

  1. व्यंग्यात्मक शैली: अकबर इलाहाबादी की शायरी में व्यंग्य और हास्य का मिश्रण होता था। उनकी कविताओं में ब्रिटिश शासन, सामाजिक बुराइयों, और आधुनिक जीवन शैली पर कटाक्ष होता था।
  2. समकालीन मुद्दों पर दृष्टिकोण: अकबर ने ब्रिटिश शासन और भारतीय समाज के पश्चिमीकरण पर तंज कसे। उन्होंने विशेष रूप से शिक्षित समाज में पनप रहे आदर्शहीनता और नैतिक पतन को अपने व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया।
  3. सीधी-सादी भाषा: अकबर इलाहाबादी ने आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल कर अपनी शायरी को आसान और समझने में सरल बनाया, ताकि उनकी बात आम जनता तक पहुँच सके।

अकबर इलाहाबादी ने अपनी शायरी के जरिए समाज को आईना दिखाने का काम किया और अपने दौर के सबसे चर्चित शायरों में से एक बने। उनकी शैली और विचारधारा ने उन्हें उर्दू अदब में एक खास स्थान दिलाया, और आज भी उनकी शायरी सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श में प्रासंगिक मानी जाती है।

अकबर इलाहाबादी और उनकी शेरो शायरी

हंगामा है क्यूँ बरपा – अकबर इलाहाबादी

कोई हँस रहा है कोई रो रहा है – अकबर इलाहाबादी

बहसें फ़ुजूल थीं यह खुला हाल देर से – अकबर इलाहाबादी

दिल मेरा जिस से बहलता – अकबर इलाहाबादी

उन्हें शौक़-ए-इबादत भी है – अकबर इलाहाबादी

जो यूं ही लहज़ा लहज़ा दाग़-ए-हसरत की तरक़्क़ी है – अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ – अकबर इलाहाबादी

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