परिचय कविता – रामधारी सिंह दिनकर. रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य के एक महान कवि थे, जिन्हें राष्ट्रकवि के रूप में जाना जाता है। उनकी कविताएँ ओजस्वी, प्रेरणादायक और समाज को नई दिशा देने वाली होती हैं। “परिचय” कविता उनकी सशक्त लेखनी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें उन्होंने अपनी पहचान, जीवन की अस्थिरता, संघर्ष, आत्ममंथन और मानवीय गरिमा का चित्रण किया है।
इस कविता में दिनकर जी अपने अस्तित्व की खोज करते हुए प्रश्न करते हैं कि वे क्या हैं—एक सीमित कण, अथवा व्यापक सागर? वे खुद को जीवन और मृत्यु के बीच भटकते एक आत्मा के रूप में देखते हैं, जो निरंतर सत्य की खोज में है।
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Table of Contents
परिचय कविता – रामधारी सिंह दिनकर
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
~ परिचय कविता – रामधारी सिंह दिनकर
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं
समाना चाहता, जो बीन उर में
विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में
सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं
जिसे निशि खोजती तारे जलाकर
उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं
कली की पंखुडीं पर ओस-कण में
रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं
मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं
रुंदन अनमोल धन कवि का,
इसी से पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं
मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं
न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं
सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्हाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं
बंधा तूफान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।
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परिचय कविता का सारांश
“परिचय” कविता में कवि ने आत्मविश्लेषण और आत्माभिव्यक्ति को प्रमुखता दी है। वे स्वयं को कभी एक छोटा जलकण मानते हैं, तो कभी सागर के समान विशाल। वे कहते हैं कि वे स्वयं अपनी छाया भी हैं और अपना आधार भी। यह कविता आत्मसंघर्ष, विचारधारा और जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करती है।
कवि खुद को उस प्रकाश का आगार मानते हैं, जिसे अंधकार में खोजा जाता है। वे सौ बार जन्म लेने और मरने की बात करते हैं, लेकिन फिर भी परम सत्य तक नहीं पहुँचने की पीड़ा व्यक्त करते हैं। वे जीवन को फूल की तरह क्षणभंगुर मानते हैं, जो आज खिला है और कल मुरझा सकता है।
इसके साथ ही, कवि स्वयं को संघर्षों से भरी हुई दुनिया में व्यथा का भार ढोने वाला बताते हैं। वे आँसुओं को पिरोकर हार बनाने वाले कवि के रूप में खुद को प्रस्तुत करते हैं। वे जीवन की अस्थिरता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि वे चाहे चिता की राख बन जाएँ, लेकिन वे धरती का श्रृंगार भी हैं।
अंत में, वे स्वयं को प्रलय की हुंकार, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की गूंज और समाज के पीड़ित वर्ग की हाहाकार बताते हैं। उनकी लेखनी बंधी हुई है, लेकिन उनके भीतर एक क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित है। यह कविता उनकी बौद्धिक और संवेदनशील सोच का परिचायक है।
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परिचय कविता की व्याख्या
“परिचय” केवल एक आत्मकथात्मक कविता नहीं, बल्कि एक दार्शनिक अभिव्यक्ति भी है। इसमें कवि ने अपने व्यक्तित्व को विभिन्न प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से प्रस्तुत किया है—
- सागर और जलकण : यह प्रतीक मानव जीवन की अनिश्चितता को दर्शाता है।
- ज्योति और अंधकार : सत्य की खोज और संघर्ष का प्रतीक।
- ओस-कण और सुमन (फूल) : जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाने वाले तत्व।
- चिता की राख और देवता का हार : विनाश और पुनर्जन्म का प्रतीक।
- सिंधु की गर्जना और प्रलय-गांडीव की टंकार : संघर्ष, क्रांति और परिवर्तन की पुकार।
इस कविता में दिनकर जी ने अपने जीवन की परिस्थितियों, आत्मसंघर्ष, मानवता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समाज में बदलाव लाने की इच्छा को दर्शाया है। उनकी यह रचना आत्मविश्लेषण के साथ-साथ समाज के लिए भी प्रेरणादायक है।
निष्कर्ष – परिचय कविता – रामधारी सिंह दिनकर
“परिचय” कविता केवल रामधारी सिंह दिनकर का आत्म-परिचय नहीं, बल्कि हर संघर्षशील व्यक्ति की भावनाओं का प्रतिबिंब है। यह कविता हमें यह सिखाती है कि जीवन एक निरंतर यात्रा है, जिसमें हमें अपने अस्तित्व की पहचान स्वयं ही करनी होती है।
दिनकर की लेखनी हमें साहस, संघर्ष और आत्मबोध का संदेश देती है। “परिचय” कविता को पढ़कर हर व्यक्ति अपने भीतर छिपे संघर्ष, संभावनाओं और मानवता के मूल्यों को समझ सकता है। यही इस कविता की सबसे बड़ी विशेषता है।
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