किसान आत्महत्या के खिलाफ एक कविता | Against Farmer Suicide

Video Title: किसान जब मर जाएंगे तो क्या नोट खाओगे? | Heartbreaking Song for Farmers | In Support of farmers

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किसान आत्महत्या के खिलाफ एक कविता


सत्ता के लिए तुम इनके वोट खाओगे,
किसान जब मर जाएंगे, तो क्या नोट खाओगे?

ऐसा करना — दो हज़ार के नोट की लाल चटनी बना लेना,
पाँच सौ के नोट की हरी तरकारी खा लेना।
दस के सिक्कों की चिप्स करारी लगेगी,
अमीरी में ये रेस तुम्हें प्यारी लगेगी।

हर आदमी करोड़पति बनने की दौड़ में है,
कहाँ से आए और धन — इसी होड़ में है।
मैं बस रुक कर देखता हूँ,
ज़माने पर नज़र फेरता हूँ।

मुझे किसान मरते नज़र आते हैं,
रोते और बिलखते नज़र आते हैं।
इनकी फ़रियाद अनसुनी कर के कहाँ जाओगे?
ये जब ख़त्म हो जाएंगे, तो क्या नोट खाओगे?

इन्हीं की खेतों पर तुमने बिल्डिंग बना डाली,
सच कहो तो कृषकों की नींव हिला डाली।
मजबूर बेचारा — मरता क्या ना करता, ए
क भूमिहार किसान अब मज़दूरी करता।

फ़सल की ज़मीनों पर अगर बिल्डिंग बनाओगे,
तो सोच कर देखो — क्या तुम नोट खाओगे?

~ Original Poem by Nitesh Sinha
Video published on @hindi_sahitya_01

इस गीत के ज़रिए हम उन किसानों की पीड़ा को आवाज़ दे रहे हैं, जिनकी मेहनत पर दुनिया पलती है, लेकिन जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी रह जाती है।

क्या होगा जब किसान नहीं रहेंगे?

“किसान जब मर जाएंगे तो क्या नोट खाओगे?”

यह सिर्फ एक सवाल नहीं, बल्कि एक कड़

🌾 कविता सारांश: “किसान जब मर जाएंगे तो क्या नोट खाओगे?”

(एक कविता किसान आत्महत्या और कृषि संकट पर)

यह कविता किसान आत्महत्या और कृषि संकट जैसे गंभीर मुद्दों पर लिखी गई एक भावुक और मार्मिक अभिव्यक्ति है। यह राजनीतिक व्यंग्य कविता समाज की उस क्रूर सच्चाई को उजागर करती है, जहाँ सत्ता पाने के लिए किसानों के वोट तो खाए जाते हैं, लेकिन उनकी मृत्यु पर कोई आँसू नहीं बहाता।

कविता की शुरुआत ही एक झकझोर देने वाले प्रश्न से होती है –
“किसान जब मर जाएंगे तो क्या नोट खाओगे?”
यह सवाल केवल नेताओं से नहीं, बल्कि पूरे समाज से है जो आज किसानों की आत्महत्या को एक खबर मानकर नजरअंदाज कर रहा है।

कविता में कवि बड़ी व्यंग्यात्मक शैली में नोटों की तुलना खाने की चीज़ों से करता है –
2000 की लाल चटनी, 500 की हरी तरकारी, और 10 के सिक्कों की करारी चिप्स। यह प्रतीकात्मकता उस अंधी दौड़ पर कटाक्ष है जिसमें हर कोई करोड़पति बनने के पीछे भाग रहा है।

कविता का सबसे भावनात्मक हिस्सा तब आता है जब कवि एक किसान की हालत का वर्णन करता है –
जिसकी जमीन पर अब बिल्डिंग बन चुकी है, और जो अब मजबूर होकर मजदूरी करने को विवश है।
यह कविता किसान की कविता होने के साथ-साथ एक समाज और राजनीति पर कविता भी है जो आज के हालात पर कठोर सवाल उठाती है।

🌱 मुख्य कीवर्ड्स शामिल:

  • किसान आत्महत्या
  • किसान की कविता
  • समाज पर कविता
  • राजनीतिक कविता
  • खेती की दुर्दशा
  • कृषि संकट
  • भूमिहीन किसान
  • किसान आंदोलन कविता
  • किसान की व्यथा

🔔 निष्कर्ष:

यह कविता सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि हर किसान की पीड़ा की आवाज़ है। यह कविता हमें याद दिलाती है कि जब अन्नदाता ही नहीं बचेंगे, तो हम क्या खाएंगे? केवल नोट और इमारतें पेट नहीं भरतीं, अन्न उगाने वाला किसान ही असली धरोहर है।

किसान जब मर जाएंगे तो क्या नोट खाओगे? | Heartbreaking Song for Farmers | In Support of farmers

इस गीत के ज़रिए हम उन किसानों की पीड़ा को आवाज़ दे रहे हैं, जिनकी मेहनत पर दुनिया पलती है, लेकिन जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी रह जाती है। क्या होगा जब किसान नहीं रहेंगे? "किसान जब मर जाएंगे तो क्या नोट खाओगे?" यह सिर्फ एक सवाल नहीं, बल्कि एक कड़


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