क्रोध की कीमत – क्रोध और जिद पर एक नैतिक कहानी

परिचय

क्रोध की कीमत, क्रोध और जिद पर एक नैतिक कहानी है। यह हिंदी में एक नैतिक कहानी है। क्रोध और जिद पर एक नैतिकता।

इस कहानी में दर्शाया गया है कि हमेशा क्रोधित और जिद्दी रहने वाला व्यक्ति कैसे सबक सीखता है। उसके हमेशा झगड़ालू स्वभाव और जिद के कारण उसने क्या खोया। आइए कहानी पढ़ें और जानें।

कहानी – क्रोध की कीमत

क्रोध की कीमत

क्रोध की कीमत – क्रोध और जिद पर एक नैतिक कहानी


एक समय की बात है। एक गांव में शीतल नाम का एक आदमी रहता था। नाम तो उसका शीतल था परंतु स्वभाव से वो बिलकुल ही उल्टा यानी बहुत ही गर्म मिज़ाज का आदमी था। छोटी छोटी बातों पर लोगों से झगड़ा मोल लेना उसकी आदत थी। वह बड़ा ही अड़ियल किस्म का आदमी था।यहाँ तक कि उसके परिवार वाले भी उसके इस गुस्सैल और अड़ियल स्वभाव से बहुत ही परेशान थे।

शीतल को लोग अक्सर शीतु कहकर बुलाते थे। शीतु की पत्नी अक्सर उसे समझाती की छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करना ठीक नहीं है, परंतु शीतु पर इन बातों का कोई असर ना होता। वह मानता था कि मैं किसी से झगड़ा नहीं करता बल्कि लोग ही उससे उलझ जाते हैं।

शीतु ने एक गधा पाल रखा था। वह अक्सर उस गधे को अपने काम में इस्तेमाल किया करता। बाजार से सामान लाना हो, या फसल काटकर ले जानी हो। वो सब कामों में अपने गधे का इस्तेमाल करता था।

शीतु के गांव के लोग भी उसके इस और गुस्सैल स्वभाव से भलीभाँति परिचित थे। इसी लिए वो भी उससे परेशान ही रहते थे। अगर गांव में किसी आदमी को रास्ते में शीतु दिखाई पड़ जाता तो वह आदमी अपना रास्ता बदल लेता कि कहीं बिना वजह झगड़ा ना हो जाए।

पूरी दुनिया में सेतु का कोई मित्र न था। वह चाहे तो सब से झगड़ा करता था, परंतु अपने गधे से बहुत ही प्यार करता था। वह उसे प्यार से नहलाता धुलाता, चारा खिलाता, अपने गधे पर वो कभी भी गुस्सा नहीं करता था।

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क्रोध की कीमत – क्रोध और जिद पर एक नैतिक कहानी


शीतु के घर के आंगन में एक शहतूत का पेड़ था जिसपर मीठे शहतूत लगते थे। 1 दिन की बात है कुछ छोटे बच्चे उसके आंगन में लगे पेड़ से शहतूत तोड़कर खाने लगे। शीतु ने जब ये देखा तो वह आगबबूला हो गया और उसने बच्चों पर धावा बोल दिया। सभी बच्चे डर के मारे भाग गए परंतु एक छोटा बच्चा सेतु की पकड़ में आ गया। शीतु ने उस बच्चे की पिटाई कर दी। बच्चे ने ये बात रोते रोते अपने घर पर बताई और ये बात पूरे गांव में फैल गई।

सब लोग शीतु की इस हरकत से नाराज थे कि इतनी छोटी बात पर बच्चे की पिटाई करना ठीक नहीं है। परंतु किसी ने भी शीतु के घर जाकर इस बात की शिकायत नहीं की।

इसी तरह कुछ दिन बीते। 1 दिन शीतु अपने गधे को लेकर दूसरे गांव गया। रास्ता काफी लंबा था तो लौटते समय सेतु को कुछ थकावट सी महसूस होने लगी। वो सोचने लगा, क्यों ना किसी पेड़ के नीचे गधे को बांध दूँ और किसी भोजनालय में भोजन कर लूँ। सेतु गधे को बांधने के लिए पेड़ तलाशने लगा तभी उसकी नजर एक पेड़ पर पड़ी जहाँ पहले से ही एक घोड़ा बंधा हुआ था। घोड़ा घास खा रहा था और घोड़े का मालिक पास ही खड़ा था। शीतू को ये जगह ठीक लगी और वह भी उसी पेड़ के साथ अपना गधा बांधने लगा।

यह देखकर घोड़े का मालिक बोला भाई अपने इस गधे को इस पेड़ पर मत बांधो। मेरा घोड़ा बड़ा ही गुस्सैल है, वह तुम्हारे इस गधे को मार डालेगा। गधे के मालिक शीतू ने कहा, यह पेड़ केवल तुम्हारा नहीं है और मैं इस पर ही अपने गधे को बांधूंगा। शीतू अपनी बात पर अड़ गया, घोड़े का मालिक बोला, यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम खुद ही इसके जिम्मेदार होंगे।

चेतावनी देने के बाद भी सेतु नहीं माना और गधे को उस पेड़ पर ही बांधकर चला गया। इधर घोड़े ने उस गधे को लातें मारकर नीचे गिरा दिया। इससे पहले कि घोड़े का मालिक उसे संभाल पाता, घोड़े ने लातें मार मार कर गधे को मार दिया। तभी गधे का मालिक यानी शीतू वहाँ पर आ गया और अपने मरे हुए गधे को देखकरचिल्लाने लगा, अरे ये तुम्हारे घोड़े ने मेरे गधे को मार दिया, अब मुझे मेरा गधा ला कर दो, नहीं तो तुम्हें यहाँ से नहीं जाने दूंगा।

घोड़े का मालिक बोला, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि मेरा घोड़ा गुस्सैल है, वह है तुम्हारे इस गधे को मार देगा, परंतु तुमने मेरी बात नहीं मानी। अब इसकी जिम्मेदारी तुम्हारी है क्योंकि मैंने पहले ही तुम्हें सावधान कर दिया था। दोनों लोग आपस में बहस करने लगे। तभी एक राहगीर ये देखकर रुक गया और बोला तुम दोनों को राजा के दरबार में जाना चाहिए। राजा ही तुम दोनों का न्याय करेंगे। दोनों सलाह मानकर राजा के दरबार में न्याय के लिए चल दिए।

राज़ दरबार में राजा ने गधे के मालिक से पूछा, पूरी बात बताओ तुम्हारा गधा कैसे मरा? गधे के मालिक जीतू ने कहा, महाराज मेरा गधा और इसका घोड़ा एक ही पेड़ के नीचे बंधे हुए थे की अचानक इसका घोड़ा पागल हो गया और उसने मेरे गधे को मार दिया।

घोड़े का मालिक बड़ी ही हैरानी से शीतु को देख रहा था कि उसने पूरी बात तो बताई ही नहीं। परन्तु वह शांत रहा और कुछ ना बोला। राजा ने घोड़े के मालिक से पूछा क्या तुम्हारे घोड़े ने ही इसके गधे को मारा है? बताओ तुम बोल क्यों नहीं रहे हो, क्या सच है? बताओ? बार बार पूछने पर भी घोड़े का मालिक कुछ नहीं बोला। राजा बोला क्या तुम बहरे और गूंगे हो क्या तुम बोल नहीं सकते?

यह देखकर शीतु अचानक बोल पड़ा महाराज यह व्यक्ति गूंगा और बहरा नहीं है। पहले तो ये मुझसे खूब चीख चीख कर बोल रहा था कि अपने गधे को इधर मत बांधो, मेरा घोड़ा इस गधे को मार देगा। अब आपके सामने गूंगा और बहरा बनने का नाटक कर रहा है।

यह सुनकर घोड़े का मालिक बोला महाराज क्षमा करें ये व्यक्ति बार बार झूठ बोल रहा था। मैंने चुप रहने का नाटक किया जिससे कि यह अपने मुँह से सच्चाई बोल दे और इसने ऐसा ही किया। इसने अभी खुद आपके सामने बोला की मैंने इसे कई बार चेतावनी दी थी कि अपने गधे को यहाँ पर मत बांधो परंतु यह नहीं माना। यह सुनकर राजा मुस्कुराने लगा और बोले, इसका मतलब है कि तुमने इसे पहले ही सावधान कर दिया था कि घोड़ा गुस्सैल हैं और गधे को यहाँ पर मत बांधो। परंतु गधे के मालिक ने इसकी बात नहीं मानी और फिर अपना गधा वहीं पर बांध दिया।

राजा ने शीतू की तरफ देखते हुए कहा, तुम्हारा झूठ पकड़ा गया, अब तुम इसके लिए खुद ही जिम्मेदार हो। बेचारे शीतू को राजा के दरबार से खाली हाथ ही लौटना पड़ा। अपने प्यारे गधे की जान जाने पर पहली बार सेतु को अपने अड़ियल गुस्सैल व्यवहार पर दुख महसूस हो रहा था। वह सोच रहा था कि अगर वह उस घुड़सवार की बात मानता और अपनी बात पर ना अड़ता और ना ही गुस्सा करता तो उसका गधा आज जिंदा होता। उसे अपनी गलती पर पछतावा था परंतु अब कुछ नहीं हो सकता था।

यह शीतू के लिए एक अच्छा सबक था। इस घटना के बाद से शीतल ने अपने व्यवहार में बदलाव लाना शुरू कर दिया। अब उसने लोगों से बिना वजह झगड़ना बंद कर दिया और एक शांतिपूर्ण जीवन जीने लगा।

कहानी का नैतिक – क्रोध की कीमत

तो इस कहानी से हमें पता चलता है कि गुस्सा, झगड़ालू स्वभाव और जिद कैसे अच्छी नहीं होती। ये नकारात्मक लक्षण हैं और इनसे बचना चाहिए।

आप क्या सोचते हैं?

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