हंगामा है क्यूँ बरपा – अकबर इलाहाबादी

हंगामा है क्यूँ बरपा – अकबर इलाहाबादी. इस शायरी में अकबर इलाहाबादी ने मानव स्वभाव, समाज की धारणाओं और ईश्वर की उपस्थिति पर अपने विचार साझा किए हैं। पहले शेर में, वो मजाकिया लहजे में कहते हैं कि थोड़ी शराब पीने पर इतनी हलचल क्यों मचती है, न ही उन्होंने डाका डाला है, न चोरी की है। इसके बाद, वह उन धर्मोपदेशकों पर कटाक्ष करते हैं, जो शराब के रंग का अनुभव नहीं रखते, फिर भी उपदेश देते हैं। अकबर बताते हैं कि उन्हें उस शराब से लगाव नहीं जो दिल को प्रभावित न कर सके, बल्कि वे उस आनंद में रुचि रखते हैं जो दिल में गहराई तक उतर सके।

इसके बाद, वो दिल और आत्मा के संघर्ष को समझाते हैं, जहाँ वे अपने दर्द को सहने की बात करते हैं और अपने मन की दृढ़ता पर भी ध्यान दिलाते हैं। अंत में, अकबर यह कहते हैं कि सृष्टि का हर कण दैवीय प्रकाश से चमकता है, हर सांस ईश्वर के अस्तित्व को महसूस कराती है। वे यह भी कहते हैं कि सूरज में धब्बे प्रकृति के करिश्मे हैं और अगर मूर्तिपूजक उन्हें काफिर कहें, तो यह भी अल्लाह की मर्जी ही है। अकबर की यह शायरी जीवन, मानव स्वभाव और आध्यात्मिकता पर व्यंग्यात्मक और गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

अकबर इलाहाबादी और उनकी शेरो शायरी

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हंगामा है क्यूँ बरपा – अकबर इलाहाबादी

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़ 1की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद 2है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां3 दिल में कि दो सदमे,यां4 जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही5 से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत 6के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

~ हंगामा है क्यूँ बरपा – अकबर इलाहाबादी

अकबर इलाहाबादी की इस शायरी में समाज, मानव स्वभाव और आध्यात्मिकता के गहरे पहलुओं को हल्के-फुल्के और व्यंग्यात्मक अंदाज में पेश किया गया है।

पहले शेर में वह कहते हैं कि थोड़ी-सी शराब पी लेने पर इतना हंगामा क्यों मचा हुआ है। उन्होंने न कोई अपराध किया है और न ही किसी का नुकसान। यह शेर एक मजाकिया टिप्पणी है उस समाज पर जो छोटी बातों को बड़ा मुद्दा बना देता है। आगे, अकबर धर्मोपदेशकों पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि जिन लोगों ने कभी शराब का स्वाद नहीं चखा, वे इसके प्रभाव को क्या समझेंगे।

इसके बाद, वह बताते हैं कि असली आनंद उस चीज में है जो दिल को छू सके, जो इंसान की भावनाओं को भीतर तक खींचे। यहाँ शराब एक प्रतीक है उस अनुभव का जो व्यक्ति को गहराई में ले जाता है।

अगले शेर में अकबर दिल और आत्मा के संघर्ष की बात करते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें अपने दर्द को सहने की आदत है, जबकि दूसरों का दिल और जी उनके संघर्ष में अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है। यह एक गहरा संदेश है कि हर इंसान का दिल और मन अलग होता है।

अंत में, अकबर यह बताते हैं कि हर कण में ईश्वर का प्रकाश झलकता है और हर सांस यह बताती है कि ईश्वर हर जगह मौजूद हैं। वे यह भी कहते हैं कि अगर मूर्तिपूजक उन्हें काफिर कहते हैं, तो यह खुदा की मर्जी है, जो उन्हें ईश्वर की अनुकंपा का अहसास कराता है।

यह पूरी शायरी समाज और आध्यात्मिकता पर अकबर की दृष्टि को गहराई से उकेरती है, जहाँ वह इंसान के स्वभाव और खुदा के करिश्मों पर व्यंग्य करते हुए अपनी बात रखते हैं।

  1. धर्मोपदेशक ↩︎
  2. मनोरथ ↩︎
  3. वहाँ ↩︎
  4. यहाँ ↩︎
  5. दैवी प्रकाश ↩︎
  6. प्रकृति ↩︎

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