अंजना बख्शी की रचनाएँBy Nitesh Sinha / अगस्त 22, 2024 अंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीअंजना बख्शी की रचनाएँ“कविता” – अंजना बख्शी की कविता“यादें” – अंजना बख्शी की कविताक्रॉस – अंजना बख्शी की कवितातस्लीमा के नाम एक कविता – अंजना बख्शी की कविताबेटियाँ – अंजना बख्शी की कविताअम्मा का सूप – अंजना बख्शी की कविताऔरतें – अंजना बख्शी की कवितामैं – अंजना बख्शी की कविताइन्तज़ार – अंजना बख्शी की कवितामुनिया – अंजना बख्शी की कविता की कवितागुलाबी रंगों वाली वो देह – अंजना बख्शी की कवितायासमीन – अंजना बख्शी की कविताबल्ली बाई – अंजना बख्शी की कविताकराची से आती सदाएँ – अंजना बख्शी की कविताबिटिया बड़ी हो गई – अंजना बख्शी की कविताभेलू की स्त्री – अंजना बख्शी की कविताकौन हो तुम – अंजना बख्शी की कविताक्यों ? – अंजना बख्शी की कविता“कविता” – अंजना बख्शी की कविताकविता मुझे लिखती हैया, मैं कविता कोसमझ नहीं पातीजब भी उमड़ती हैभीतर की सुगबुगाहटकविता गढ़ती है शब्दऔर शब्द गन्धाते हैं कविताजैसे चौपाल से संसद तकगढ़ी जाती हैं ज़ुल्म कीअनगिनत कहानियाँ,वैसे ही,मुट्ठी भर शब्दों सेगढ़ दी जाती हैकाग़ज़ों पर अनगिनतकविताएँ और कविताओं मेंअनगिनत नक़्श, नुकीले,चपटे और घुमावदारजो नहीं होते सीधेसपाट व सहज वर्णमालाकी तरह !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूची“यादें” – अंजना बख्शी की कवितायादें बेहद ख़तरनाक होती हैंअमीना अक्सर कहा करती थीआप नहीं जानती आपाउन लम्हों को, जो अब अम्मीके लिए यादें हैं…ईशा की नमाज़ के वक़्तअक्सर अम्मी रोया करतींऔर माँगतीं ढेरों दुआएँबिछड़ गए थे जो सरहद पर,सैंतालीस के वक़्त उनके कलेजे केटुकड़े.उन लम्हों को आज भीवे जीतीं दो हज़ार दस में,वैसे ही जैसे था मंज़रउस वक़्त का ख़ौफनाकभयानक, जैसा कि अबहो चला है अम्मी काझुर्रीदार चेहरा, एकदमभरा सरहद की रेखाओंजैसी आड़ी-टेढ़ी कई रेखाओंसे, बोझिल, निस्तेज औरओजहीन !~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीक्रॉस – अंजना बख्शी की कविताओह जीसस….तुम्हरा मनन करते या चर्च की रोशन इमारतके क़रीब से गुज़रते हीसबसे पहले रेटिना पर फ्रीज होता हैंएक क्रॉसतुम सलीबों पर चढ़ा दिए गए थेया उठा लिए गए थे सत्य के नाम परकीलें ठोक दीं गई थींइन सलीबो मेंलेकिन सारी कराहों और दर्द को पी गए थे तुममें अक्सर गुजरती हूँ विचारों के इस क्रॉस सेतब भी जब-जब अम्मी की उँगलियाँबुन रही होती हैं एक शाल ,बिना झोल के लगातार सिलाई दर सिलाईफंदे चढ़ते और उतरते जातेएक दूसरे को क्रास करते हुए…ओह जीसस …..यहाँ भी क्रॉस ,माँ के बुनते हाथों या शाल की सिलाइयो केबीच और वह भी ,जहाँ माँ की शून्यहीन गहरी आखेंअतीत के मजहबी दंगों में उलझ जाती हैंवहाँ देखतीं हैं ८४ के दंगों का सन्नाटा और क्रॉसओह जीसस….कब तुम होंगे इस सलीब से मुक्तया कब मुक्त होउँगी इस सलीब से में !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीतस्लीमा के नाम एक कविता – अंजना बख्शी की कविताटूटते हुए अक्सर तुम्हें पा लेने का एहसासकभी-कभी ख़ुद से लड़ते हुएअक्सर तुम्हें खो देने का एहसासया रिसते हुये ज़ख़्मों मेंअक्सर तुम्हे खोजने का एहसासतुम मुझ में अक्सर जीवित हो जाती हो तस्लीमाबचपन से तुम भी देखती रही मेरी तरह,अपनी ही काँटेदार सलीबो पर चढ़ने का दुखबचपन से अपने ही बेहद क़रीबी लोगो केबीच तुम गुज़रती रही अनाम संघर्ष–यात्राओं सेबचपन से अब तक की उड़ानों में,ज़ख़्मों और अनगिनत काँटों से सनाखींचती रही तुमअपना शरीर या अपनी आत्मा कोशरीर की गंद से लज्जा की सड़कों तककई बार मेरी तरह प्रताड़ित होती रहीतुम भी वक़्त के हाथों, लेकिन अपनी पीड़ा ,अपनी इस यात्रा से हो बोरनए रूप में जन्म लेती रही तुममेरे ज़ख़्म मेरी तरह एस्ट्राग नहीना ही क़द में छोटे हैं, अब सुंदर लगने लगे हैंमुझे तुम्हरी तरह !रिसते-रिसते इन ज़ख़्मों से आकाश तक जानेवाली एक सीढ़ी बुनी हैं मैंनेतुम्हारे ही विचारों की उड़ान सेऔर यह देखो तस्लीमामैं यह उड़ीदूर… चलीअपने सुंदर ज़ख़्मों के साथकही दूर क्षितिज मेंअपने होने की जिज्ञासा को नाम देनेया अपने सम्पूर्ण अस्तित्व की पहचान के लिएतसलीमा,उड़ना नही भूली मैं….अभी उड़ रही हूँ मैं…अपने कटे पाँवों औररिसते ज़ख़्मों के साथ~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीबेटियाँ – अंजना बख्शी की कविताबेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से।बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में।बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैंजो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल में।बेटियाँ पतंगें होती हैंजो कट जाया करती हैं अपनी ही डोर सेऔर हो जाती हैं पराई।बेटियाँ टेलिस्कोप-सी होती हैंजो दिखा देती हैं– दूर की चीज़ पास।बेटियाँ इन्द्रधनुष-सी होती हैं, रंग-बिरंगीकरती हैं बारिश और धूप के आने का इंतज़ारऔर बिखेर देती हैं जीवन में इन्द्रधनुषी छटा।बेटियाँ चकरी-सी होती हैंजो घूमती हैं अपनी ही परिधि मेंचक्र-दर-चक्र चलती हैं अनवरतबिना ग्रीस और तेल की चिकनाई लिएमकड़जाले-सा बना लेती हैंअपने इर्द-गिर्द एक घेराजिसमें फँस जाती हैं वे स्वयं ही।बेटियाँ शीरीं-सी होती हैंमीठी और चाशनी-सी रसदारबेटियाँ गूँध दी जाती हैं आटे-सीबन जाने को गोल-गोल संबंधों की रोटियाँदेने एक बीज को जन्म।बेटियाँ दीये की लौ-सी होती हैं सुर्ख लालजो बुझ जाने पर, दे जाती हैं चारों ओरस्याह अंधेरा और एक मौन आवाज़।बेटियाँ मौसम की पर्यायवाची हैंकभी सावन तो कभी भादो हो जाती हैंकभी पतझड़-सी बेजानऔर ठूँठ-सी शुष्क !~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीअम्मा का सूप – अंजना बख्शी की कविताअक्सर याद आता हैअम्मा का सूपफटकती रहती घर केआँगन में बैठीकभी जौ, कभी धानबीनती ना जानेक्या-क्या उन गोल-गोलराई के दानों के भीतर सेलगातार लुढ़कते जाते वेअपने बीच के अंतराल को कम करतेअम्मा तन्मय रहतीउन्हें फटकने और बीनने में।भीतर की आवाज़ों कोअम्मा अक्सरअनसुना ही किया करतीचाय के कप पड़े-पड़ेठंडे हो जातेपर अम्मा का भारी-भरकम शरीरभट्टी की आँच-सा तपता रहताजाड़े में भी नहीं थकतीअम्मा निरंतर अपना काम करते-करते।कभी बुदबुदातीतो कभी ज़ोर-ज़ोर सेकल्लू को पुकारतीगाय भी रंभानाशुरू कर देती अम्मा कीपुकार सुनकर।अब अम्मा नहीं रहीरह गई है शेषउनकी स्मृतियाँ औरअम्मा का वो आँगनजहाँ अब न गायों कारंभाना सुनाई देता हैना ही अम्मा की वोठस्सेदार आवाज़।~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीऔरतें – अंजना बख्शी की कविताऔरतें –मनाती हैं उत्सवदीवाली, होली और छठ काकरती हैं घर भर में रोशनीऔर बिखेर देती हैं कई रंगों में रंगीखुशियों की मुस्कानफिर, सूर्य देव से करती हैंकामना पुत्र की लम्बी आयु के लिए।औरतें –मुस्कराती हैंसास के ताने सुनकरपति की डाँट खाकरऔर पड़ोसियों के उलाहनों में भी।औरतें –अपनी गोल-गोलआँखों में छिपा लेती हैंदर्द के आँसूहृदय में तारों-सी वेदनाऔर जिस्म पर पड़ेनिशानों की लकीरें।औरतें –बना लेती हैंअपने को गाय-साबँध जाने को किसी खूँटे से।औरतें –मनाती है उत्सवमुर्हरम का हर रोज़खाकर कोड़ेजीवन में अपने।औरतें –मनाती हैं उत्सवरखकर करवाचौथ का व्रतपति की लम्बी उम्र के लिएऔर छटपटाती हैं रात भरअपनी ही मुक्ति के लिए।औरतें –मनाती हैं उत्सवबेटों के परदेस सेलौट आने परऔर खुद भेज दी जाती हैंवृद्धाश्रम के किसी कोने में।~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीमैं – अंजना बख्शी की कवितामैं क़ैद हूँऔरत की परिभाषा मेंमैं क़ैद हूँअपने ही बनाए रिश्तों औरसंबंधों के मकड़जाल में।मैं क़ैद हूँकोख की बंद क्यारी में।मैं क़ैद हूँमाँ के अपनत्व में।मैं क़ैद हूँपति के निजत्व मेंऔरमैं क़ैद हूँअपने ही स्वामित्व में।मैं क़ैद हूँअपने ही में।~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीइन्तज़ार – अंजना बख्शी की कवितापौ फटते हीउठ जाती हैं स्त्रियाँबुहारती हैं झाड़ूऔर फिर पानी केबर्तनों की खनकतीहैं आवाज़ेंपायल की झंकार औरचूड़ियों की खनक सेगूँज जाता है गली-मुहल्लेका नुक्कड़जहाँ करती हैं स्त्रियाँइंतज़ार कतारबद्ध होपाने के आने का।होती हैं चिंता पति केऑफिस जाने की औरबच्चों के लंच बाक्सतैयार करने की,देखते ही देखतेहो जाती है दोपहरअब स्त्री को इंतज़ारहोता है बच्चों केस्कूल से लौटने काऔर फिर धीरे-धीरेढल जाती है शाम भीउसके माथे की बिंदीअब चमकने लगती हैपति के इंतज़ार मेंऔर फिर होताउसे पौ फटने काअगला इंतज़ार!!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीमुनिया – अंजना बख्शी की कविता की कविता‘मुनिया धीरे बोलोइधर-उधर मत मटकोचौका-बर्तन जल्दी करोसमेटो सारा घर’मुनिया चुप थीसमेट लेना चाहती थी वह अपनेबिखरे सपनेअपनी बिखरी बालों की लटजिसे गूंथ मां ने कर दिया था सुव्यवस्थित‘अब तुम रस्सी मत कूदनाशुरू होने को है तुम्हारी माहवारीतुम बड़ी हो गई हो”मुनिया“सच मांक्या मैं तुम्हारे जितनी बड़ी हो गई हूंक्या अब मेरी भी हो जाएगी शादी”मेरे जैसे ही मेरी भी मुनिया…?और उसकी भी यही जिन्दगी…नहीं मांमैं बड़ी नहीं होना चाहती“कहते-कहते टूट गईमुनिया की नींदउस वृक्ष की पत्तियांआज उदास हैंऔर उदास हैं उस पर बैठीवह काली चिड़ियाआज मुनिया नहीं आयी खेलनेअब वह बड़ी हो गई है नउसका ब्याह होगागुड्डे-गुड्डी खेल खिलौनों की दुनिया छोड़मुनिया हो जायेगी उस वृक्ष की जड़-सी स्तब्धहो जायेगी उसकी जिन्दगीउस काली चिड़िया-सीजो फुदकना छोड़बैठी हैउदासउस वृक्ष की टहनी पर!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीगुलाबी रंगों वाली वो देह – अंजना बख्शी की कवितामेरे भीतरकई कमरे हैंहर कमरे मेंअलग-अलग सामानकहीं कुछ टूटा-फूटातो कहींसब कुछ नया!एकदम मुक्तिबोध कीकविता-जैसाबस ख़ाली है तोइन कमरों कीदीवारों परये मटमैला रंगऔर ख़ाली हैभीतर कीआवाज़ों से टकरातीमेरी आवाज़नहीं जानती वोप्रतिकार करनापर चुप रहना भीनहीं चाहतीकोई लगातारदौड़ रहा हैभीतरऔर भीतरइन छिपीतहों के बीचलुप्त हो चली हैमेरी हँसीजैसे लुप्त हो गईनाना-नानीऔर दादा-दादीकी कहानियाँपरियों के किस्सेवो सूत काततीबुढ़ियाजो दिख जाया करतीकभी-कभीचंदा मामा मेंमैं अभी भीज़िंदा हूँक्योंकि मैंमरना नहीं चाहतीमुर्दों के शहर मेंसड़ी-गलीपरंपराओं के बीचजहाँ हरचीज़ बिकती होजैसे बिकते हैंगीतबिकती हैंदलीलेंऔर बिका करती हैंगुलाबी रंगों वालीवो देहजिसमें बंद हैंकई कमरेऔर हरकमरे कीचाबीटूटती बिखरतीजर्जर मनुष्यता-सीकहीं खो गई!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीयासमीन – अंजना बख्शी की कविताआठ वर्षीय यासमीनबुन रही है सूतवह नहीं जानतीस्त्री देह का भूगोलना ही अर्थशास्त्र,उसे मालूम नहींछोटे-छोटे अणुओं सेटूटकर परमाणु बनता हैकेमिस्ट्री में।या बीते दिनों की बातेंहो जाया करती हैंक़ैद हिस्ट्री में।नहीं जानती वह स्त्रीके भीतर के अंगोंका मनोविज्ञान और,ना ही पुरूष के भीतरीअंगों की संरचना।ज्योमेट्री से भी वहअनभिज्ञ ही है,रेखाओं के नाप-तौलऔर सूत्रों का नहींहै उसे ज्ञान।वह जानती है,चरखे पर सूत बुननाऔर फिर उस सूत कोगोल-गोल फिरकीपर भरनावह जानती हैअपनी नन्ही-नन्ही उँगलियों सेधारदार सूत सेबुनना एक शाल,वह शाल, जिसकाएक तिकोना भीउसका अपना नहीं।फिर भी वहकात रही है सूत,जिसके रूँये केमीठे ज़हर का स्वादनाक और मुँह सेरास्ते उसके शरीर मेंघर कर रहा हैवह नहीं जानतीजो देगा उसेअब्बा की तरह अस्थमाऔर अम्मी की तरहबीमारियों की लम्बी लिस्टऔर घुटन भरी ज़िदंगीजिसमें क़ैद होगायासमीन कीबीमारियों का एक्सरे।~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीबल्ली बाई – अंजना बख्शी की कवितादाल भात और पोदीने की चटनी सेभरी थाली आती हैं जब यादतो हो उठता है ताज़ाबल्ली बाई के घर का वो आँगनऔर चूल्हे पर हमारे लिएपकता दाल–भात ! दादा अक्सर जाली-बुना करते थेमछली पकड़ने के लिए पूरी तन्मयता से,रेडियों के साथ चलती रहती थीउनकी उँगलियाँऔर झाडू बुहारकर सावित्री दीहमारे लिए बिछा दिया करती दरी से बनी गुदड़ी औरसामने रख देती बल्ली बाईचुरे हुए<ref>उबले हुए</ref> भात और उबली दाल केसाथ पोदीने की चटनी एक-एक निवाला अपनेखुरदरे हाथो से खिलातीजिन हाथों सेवो घरों में माँजती थी बर्तनकितना ममत्व था उन हाथों केस्पर्श में,नही मिलता जो अब कभीराजधानी में !उस रोज़,बल्ली बाई चल बसी औरसंग में उसकी वो दाल–भात की थालीऔर फटे खुरदरे हाथों की महक !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीकराची से आती सदाएँ – अंजना बख्शी की कवितारोती हैं मज़ारों परलाहौरी माताएँबाँट दी गई बेटियाँहिन्दुस्तान और पाकिस्तानकी सरहदों परअम्मी की निगाहेंटिकी है हिन्दुस्तान कीधरती पर,बीजी उड़िकती है राहलाहौर जाने कीउन्मुक्त विचरतेपक्षियों के देख-देखसरहदें हो जाती हैबाग-बाग।पर नहीं आता कोईपैग़ाम काश्मीर की वादियोंसे, मिलने हिन्दुस्तान कीसर-ज़मीं परसियासी ताक़तों औरनापाक इरादों ने कर दियाहै क़त्ल, अम्मी-अब्बाके ख़्वाबों का, सलमा की उम्मीदों काऔर मचा रही है स्यापालाहौरी माताएँ, बेटियों केलुट-पिट जाने का,मौन ग़मगीन हैतालिबानी औरतों-मर्दों केबारूद पे ढेर होजाने पर।लेकिन कराची सेआ रही है सदाएँडरो मत….मत डरो….उठा ली हैशबनम ने बंदूक !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीबिटिया बड़ी हो गई – अंजना बख्शी की कवितादेख रही थीउस रोज़ बेटी कोसजते-सँवरतेशीशे में अपनीआकृति घंटों निहारतेनयनों में आस काकाजल लगाते,उसके दुपट्टे कोबार-बार सरकतेऔर फिर अपनी उलझीलटों को सुलझातेहम उम्र लड़कियों केसाथ हँसते-खिलखिलाते ।माँ से अपनी हर बात छिपातेअकेले में ख़ुद सेसवाल करते,फिर शरमा के,सर को झुकाते ।और फिर कभी स्तब्धमौंन हो जाते;कभी-कभी आँखोंसे आँसू बहातेफिर दोनों हाथों सेमुँह को छिपाते । देखकर सोचती हूँ उसेलगता है,बिटिया अब बड़ीहो गई है !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीभेलू की स्त्री – अंजना बख्शी की कवितासूखी बेजानहड्डियों मेंअब दम नहींरहा काका ।भेलू तो चलागया,और छोड़ गयापीछे एक संसारक्या जाते वक़्तउसने सोचा भीना होगाकैसे जीएगी मेरीघरवाली ?कौन बचाएगा उसेभूखे भेड़ियों से ?कैसे पलेगा, उसकेदर्जन भर बच्चोंका पेट ?बोलो न काका ?उसने तनिक भीना सोचा होगामेरी जवानी के बारे में ?तरस भी न आयाहोगा मुझ पर ?कल्लू आया था कलमाँगने पैसे,जो दारू के लिए,लिये थे….भेलू नेकहाँ से लाती पैसा ?सब कुछ तो बेचदिया था उसनेबस, एक मैं ही बची थीकि चल बसा वो !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीकौन हो तुम – अंजना बख्शी की कवितातंग गलियों से होकरगुज़रता है कोईआहिस्ता-आहिस्ताफटा लिबास ओढ़ेकहता है कोईआहिस्ता-आहिस्तापैरों में नहीं चप्पल उसकेकाँटों भरी सेज परचलता है कोईआहिस्ता-आहिस्ताआँखें हो गई हैं अबउसकी बूढ़ीधँसी हुई आँखों सेदेखता है कोईआहिस्ता-आहिस्ताएक रोज़ पूछा मैंनेउससे,कौन हो तुम‘तेरे देश का कानून’बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूचीक्यों ? – अंजना बख्शी की कविताबच्चों की,चीख़ों से भरानिठारी का नालाचीख़ता है ख़ामोश चीख़सड़ रहे थे जिसमेंमांस के लोथड़ेगल रही थी जिसमेंहड्डियों की कतारेंऔर दफ़्न थी जिसमेंमासूमों की ख़ामोश चीख़ेंकर दिया गया थाजिन्हें कई टुकड़ों मेंबनाने अपनी हवस काशिकार,क्यों है वो भेड़ियाअब भी जिंदा?कर देनी चाहिएज़िस्म की उसकेबोटी-बोटी,बनने गिद्ध और चीलोंका भोजन !!~ अंजना बख्शीअंजना बख्शी का जीवन परिचयअंजना बख्शी की प्रतिनिधि रचनाएँरचनाकारों-की-सूची
कालिदास (कालि का दास): प्राचीन भारत की साहित्यिक प्रतिभाब्लॉग, जीवनियाँ / Mahakavi Kalidas Ka Jivan Parichay, कालिदास | भारतीय कवि और नाटककार, कालिदास और उनकी कृतियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी, कालिदास का जीवन परिचय, कालिदास का परिचय, कालिदास कौन थे?, कालिदास: जीवन और कार्य, महाकवि कालिदास का जीवन परिचय / By Nitesh Sinha