दिल्ली कविता – रामधारी सिंह “दिनकर”. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित कवि थे, जिन्हें राष्ट्रीय चेतना और क्रांति की भावना से ओत-प्रोत रचनाओं के लिए जाना जाता है। उनकी कविता “दिल्ली” केवल एक शहर का वर्णन नहीं, बल्कि उसके ऐतिहासिक और सामाजिक संघर्षों का प्रतिबिंब है। यह कविता विशेष रूप से उन परिस्थितियों को दर्शाती है, जब दिल्ली उजाड़ और विध्वंस के दौर से गुजर रही थी, फिर भी वह श्रृंगार में लिप्त प्रतीत होती है।
दिनकर की “दिल्ली” कविता भावनात्मक तीव्रता से भरी हुई है, जिसमें कवि अपने समय की राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक परिस्थितियों पर कटाक्ष करता है। वह दिल्ली को एक ऐसे शहर के रूप में चित्रित करते हैं, जो भले ही बाहरी रूप से समृद्ध और सजी हुई दिखती हो, लेकिन भीतर से उजड़ी हुई और पीड़ा से ग्रसित है।
कवि इसे एक विरोधाभास के रूप में प्रस्तुत करते हैं कि जब पूरा राष्ट्र दर्द और संघर्ष से जूझ रहा था, तब दिल्ली एक दिखावटी श्रृंगार में मग्न थी। कविता में इतिहास के जख्मों, भूख, पीड़ा और संघर्ष को भावनात्मक रूप से व्यक्त किया गया है, जो पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करता है।
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Table of Contents
दिल्ली कविता
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में
~ दिल्ली कविता – रामधारी सिंह “दिनकर”
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ?
मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!
इस उजाड़ निर्जन खंडहर में
छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर मे
तुझे रूप सजाने की सूझी
इस सत्यानाश प्रहर में !
डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया-तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;
हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इनपर नमक हाय, छिड़काना !
महल कहां बस, हमें सहारा
केवल फ़ूस-फ़ास, तॄणदल का;
अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का
गम, आँसू या गंगाजल का;
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विश्लेषण व भावार्थ:
“दिल्ली” कविता में दिनकर ने तत्कालीन समाज की विडंबनाओं को बड़ी गहराई से चित्रित किया है।
- कविता के पहले हिस्से में, कवि चांदनी की मलिनता को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं और नियति द्वारा किए गए व्यंग्य को महसूस करते हैं। वह प्रश्न करते हैं कि मरघट के समान उजड़ी हुई दिल्ली क्यों श्रृंगार कर रही है?
- कविता में कोयल का मर्सिया गाना और दिल्ली का उत्सव मनाना एक तीव्र विरोधाभास प्रस्तुत करता है, जहां कवि यह संकेत देते हैं कि जब लोग घाव धो रहे हैं, तब सत्ता नमक छिड़कने में व्यस्त है।
- अंतिम पंक्तियाँ पीड़ा की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं, जहाँ कवि बताते हैं कि जनता के पास महलों का वैभव नहीं, बल्कि घास-फूस ही उनका सहारा है। अन्न का न मिलना और केवल आँसू और गंगाजल से जीवन का संघर्ष चलता रहना, इस कविता को और भी मार्मिक बना देता है।
निष्कर्ष:
“दिल्ली” केवल एक शहर का चित्रण नहीं है, बल्कि यह उन ऐतिहासिक परिस्थितियों का जीवंत दस्तावेज है, जब सत्ता और जनता के बीच की खाई बढ़ती जा रही थी। दिनकर की लेखनी इस कविता में सामाजिक अन्याय, शासकों के आडंबर, और जनता की पीड़ा को बेहद प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करती है। यह कविता न केवल इतिहास का प्रतिबिंब है, बल्कि आज भी समाज की अनेक विडंबनाओं को दर्शाने वाली एक अमर रचना बनी हुई है।
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