रश्मिरथी प्रथम सर्ग भाग 1 | वीर कर्ण का परिचय एवं जन्म कथा |

रश्मिरथी प्रथम सर्ग | रश्मिरथी प्रथम सर्ग भाग 1 | वीर कर्ण का परिचय | कर्ण का परिचय एवं जन्म | जय हो, जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, | वीर कर्ण का परिचय एवं जन्म

परिचय

रश्मिरथी प्रथम सर्ग भाग 1. वीर कर्ण का परिचय एवं जन्म कथा। इस भाग में हम पढ़ेंगे कि कर्ण का जन्म कैसे हुआ और उनके जन्म पर क्या हुआ था।

ये रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई खूबसूरत पंक्तियां हैं और कर्ण के जन्म के साथ-साथ समाज पर व्यंग्य भी करती हैं. उनका पूरा उद्देश्य यह कहना है कि उच्च आत्माओं और उच्च मूल्य वाले व्यक्ति को उसके जन्म से उस समाज में नहीं पहचाना जाना चाहिए जिसमें वह पैदा हुआ है। बल्कि उनकी प्रतिभा की सराहना की जानी चाहिए.

रश्मिरथी कविता के बोल ~ रश्मिरथी प्रथम सर्ग भाग 1

‘जय हो, जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,
सुधी खोजते नहीं गुणों का आदि, शक्ति का मूल।
 
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
 
जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी,
उसका पलना हुई धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‍भुत वीर।
 
तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,
जाति-गोत्र का नहीं, शील का, पौरूष का अभिमानी।
ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक् अभ्यास,
अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।
 
अलग नगर के कोलाहल से, अलग पुरी-पुरजन से,
कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन से।
 निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर,
वन्य कुसुम-सा खिला कर्ण जग की आँखों से दूर।
 
नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,
अमित वार खिलते
वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।
समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े क़ीमती लाल।
 
जलद-पटल में छिपा, किन्तु, रवि कबतक रह सकता है?
युग की अवहेलना शूरमा कबतक सह सकता है?
पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,
फूट पड़ी सबके समक्ष पौरूष की पहली आग।

~ Ramdhari Singh Dinkar

रश्मिरथी कविता का अर्थ ~ रश्मिरथी प्रथम सर्ग भाग 1

रश्मिरथी कविता का अर्थ


‘जय हो, जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,
सुधी खोजते नहीं गुणों का आदि, शक्ति का मूल।

~ Ramdhari Singh Dinkar

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आग कहीं भी जलती है, हम उसे नमन करते हैं। इसका कारण यह है कि अग्नि पवित्र है। अग्नि वीरता और साहस को दर्शाती है। यह वीरता का प्रतीक है। जो भी मनुष्य शक्ति, साहस और वीरता रखता है, हम उसकी प्रशंसा करते हैं और उसे नमन करते हैं। हम साहस, शौर्य और वीरता को नमन करते हैं।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फूल कहां खिलता है, उसका सम्मान होता है। यह किसी भी पेड़, किसी शाखा, किसी जंगल या किसी खूबसूरत बगीचे में खिल सकता है। फूल का आदर होता है।


ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।

~ Ramdhari Singh Dinkar

विद्वान और बुद्धिमान लोग शक्ति और गुणों की उत्पत्ति और स्रोत को खोजने में अपना समय बर्बाद नहीं करते हैं। इसका मतलब यह है कि बुद्धिमान लोग यह जानने के बजाय कि व्यक्ति किस जाति, धर्म या वर्ग में पैदा हुआ है, उसके गुणों और विशेषताओं को महत्व देते हैं। जो वर्ग और पंथ के आधार पर भेदभाव नहीं करता, वही सबसे अधिक विद्वान और महान बुद्धि वाला होता है।

जिस व्यक्ति के हृदय में दया होती है और जो त्याग करने में सक्षम होता है वह सबसे सम्मानित व्यक्ति होता है। सच्चा योद्धा या क्षत्रिय वही है जो किसी भी परिस्थिति से नहीं डरता। सबसे सम्मानित और सबसे बड़ा ब्राह्मण वह व्यक्ति है जो तपस्या और त्याग करने में सक्षम है।

वैभवशाली और प्रतापी लोगों को दुनिया को अपना जन्म कुल, अपना धर्म, जाति या वर्ग बताने से सम्मान नहीं मिलता। बल्कि वे अपने साहस और वीरता का परिचय देकर सम्मान अर्जित करते हैं।

मूल, वर्ग और जाति निम्नतम मूल्य हैं। इन निम्न मूल्यों के आधार पर दुनिया चाहे किसी को सही या गलत कहे, वीरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वीर और निर्भय लोग ही इतिहास में अपनी छाप छोड़ते हैं। बहादुर और महान लोग अपने जन्म और मूल वर्ग की मदद नहीं लेते, वे अपने महान कार्य से इतिहास में अपनी छाप छोड़ते हैं और स्थान बनाते हैं।


जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी,
उसका पलना हुई धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‍भुत वीर।

~ Ramdhari Singh Dinkar

जिनके पिता भगवान “सूर्य” और माता धर्मपरायण महिला “कुंती” थीं। पैदा होते ही उसे त्याग दिया गया। उनकी पहली जगह एक टोकरी थी जो नदी की धारा पर बह रही थी। (कर्ण को क्यों त्याग दिया गया – पढ़ें)

उन्हें सारथी के एक परिवार ने गोद लिया और उनका पालन-पोषण किया, और उन्होंने अपनी जन्म देने वाली माँ का दूध भी नहीं चखा। इसके विपरीत, कर्ण सभी योद्धाओं के बीच एक उत्कृष्ट योद्धा और बेहद बहादुर के रूप में विकसित हुआ।


तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,
जाति-गोत्र का नहीं, शील का, पौरूष का अभिमानी।
ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक् अभ्यास,
अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।

~ Ramdhari Singh Dinkar

शरीर से मजबूत, अंदर से भावुक और त्याग कर्ण का चरित्र था। वह अपने जन्म के कुल से हतोत्साहित नहीं थे। यहां तक कि लोग जब उनसे कहते थे कि वह सारथी का बेटा है, तब भी वह निराश नहीं हुए। कर्ण को अपनी वीरता और पुरुषार्थ पर गर्व था। उन्हें अपनी युद्ध कला और साहस पर गर्व था। उन्होंने कभी ये चिंता नहीं की के समाज उनके कुल के बारे में क्या बोलता है।

कर्ण ने ज्ञान प्राप्त किया, ध्यान सीखा, शास्त्र सीखा, और हथियारों (तीरंदाजी, तलवार, गदा आदि) का उपयोग सीखा और उन्होंने इसका अच्छी तरह से अभ्यास किया। अपने महान चरित्र के निर्माता वे स्वयं थे। यह कहा जा सकता है कि वे अपने शिक्षक स्वयं थे।


अलग नगर के कोलाहल से, अलग पुरी-पुरजन से,
कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन से।
 निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर,
वन्य कुसुम-सा खिला कर्ण जग की आँखों से दूर।

~ Ramdhari Singh Dinkar

शहर की भीड़ और नागरिकों से दूर उन्होंने खुद को कठिन अभ्यास में लगाया। कर्ण ने शहर से दूर एकांत स्थान पर पूरी एकाग्रता के साथ अपने कौशल का अभ्यास किया। अपनी साधना, एकाग्रता और परिश्रम के संकल्प में वह सबकी नजरों से दूर जंगल में फूल की तरह खिल गया।


नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,
अमित वार खिलते
वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।
समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े क़ीमती लाल।

~ Ramdhari Singh Dinkar

फूल सिर्फ शाही बगीचों में ही नहीं खिलते। कई बार ये दूर घने जंगलों में भी खिलते हैं। प्रकृति का रहस्य कौन जानता है, यह अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है। पुराने और फटे कपड़ों में प्रकृति अनमोल रत्न रखती है। इसका मतलब यह है कि प्रकृति अमूल्य रत्नों को ऐसी जगह रखती है जिसकी आपको उम्मीद नहीं होती।


जलद-पटल में छिपा, किन्तु, रवि कबतक रह सकता है?
युग की अवहेलना शूरमा कबतक सह सकता है?
पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,
फूट पड़ी सबके समक्ष पौरूष की पहली आग।

~ Ramdhari Singh Dinkar

सूरज कब तक समुद्र के पीछे छिपा रह सकता है? एक बहादुर व्यक्ति कब तक दुनिया से छिपा और उपेक्षित रह सकता है? एक दिन, उसे बाहर आने का सही समय मिल जाता है। इसी प्रकार एक दिन ऐसा भी आया, जब कर्ण संसार से बाहर आया। कर्ण का यौवन जागृत हो गया और वह सबको अपनी वीरता और बहादुरी की आग दिखाने के लिए बाहर आया।


रश्मिरथी प्रथम सर्ग भाग 1 का सारांश

इस भाग में, मैंने 7 कविताएँ शामिल की हैं, और उनमें बताया गया है कि लोगों की पहचान उनके गुणों से होती है, न कि जाति या जन्म के कुल से। इसके अलावा, बुद्धिमान लोग इन अनावश्यक कारणों को खोजने में अपना समय बर्बाद नहीं करते हैं, बल्कि वे लोगों के अच्छे गुणों, जैसे वीरता, वीरता, साहस, बलिदान और अच्छे स्वभाव का सम्मान करते हैं।

Later we look into the summary of Karna’s birth and how he attained qualities living alone. He practiced his skills, scriptures and battle abilities. This effort of Karna gives him a respected position in the eyes of Ramdhari Singh Dinkar.

बाद में हम कर्ण के जन्म का सारांश देखेंगे और देखेंगे कि कैसे उन्होंने अकेले रहकर गुणों को प्राप्त किया। उन्होंने अपने कौशल, शास्त्र और युद्ध क्षमताओं का अभ्यास किया। कर्ण का यह प्रयास उन्हें रामधारी सिंह दिनकर की नजर में सम्मानित स्थान दिलाता है।

पढ़ने के लिए धन्यवाद!






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