Rashmirathi Chapter 3 Part 6 | Prasadon Ke Kankabh Shikhar | Greatness of Karna

Rashmirathi Chapter 3 Part 6 | Prasadon Ke Kankabh Shikhar | Karna Make Strong Points

‘प्रासादों के कमकाभ शिखर,
 होते कबूतरों के ही घर,
महलों में गरुड़ ना होता है,
 कंचन पर कभी न सोता है.
 रहता वह कहीं पहाड़ों में,
शैलों की फटी दरारों में.
 
“होकर सुख-समृद्धि के अधीन,
मानव होता निज तप क्षीण,
सत्ता किरीट मणिमय आसन,
करते मनुष्य का तेज हरण.
नर विभव हेतु लालचाता है,
 पर वही मनुज को खाता है.
 
“चाँदनी पुष्प-छाया मे पल,
 नर भले बने सुमधुर कोमल,
 पर अमृत क्लेश का पिए बिना,
आताप अंधड़ में जिए बिना,
वह पुरुष नही कहला सकता,
 विघ्नों को नही हिला सकता.
 
‘उड़ते जो झंझावतों में,
पीते सो वारी प्रपातो में,
सारा आकाश अयन जिनका,
विषधर भुजंग भोजन जिनका,
वे ही फानिबंध छुड़ाते हैं,
धरती का हृदय जुड़ाते हैं.
 
“मैं गरुड़ कृष्ण मै पक्षिराज,
सिर पर ना चाहिए मुझे ताज.
दुर्योधन पर है विपद घोर,
 सकता न किसी विधि उसे छोड़,
रण-खेत पाटना है मुझको,
अहिपाश काटना है मुझको.
 
“संग्राम सिंधु लहराता है,
सामने प्रलय घहराता है,
रह रह कर भुजा फड़कती है,
बिजली-सी नसें कड़कर्ती हैं,
चाहता तुरत मैं कूद पड़,
जीतूं की समर मे डूब मरूं.
 
“अब देर नही कीजै केशव,
अवसेर नही कीजै केशव.
 धनु की डोरी तन जाने दें,
संग्राम तुरत ठन जाने दें,
तांडवी तेज लहराएगा,
संसार ज्योति कुछ पाएगा.
 
‘हाँ, एक विनय है मधुसूदन,
मेरी यह जन्मकथा गोपन,
मत कभी युधिष्ठिर से कहिए,
जैसे हो इसे छिपा रहिए,
वे इसे जान यदि पाएँगे,
सिंहासन को ठकराएँ गे.

“साम्राज्य न कभी स्वयं लेंगे,
 सारी संपत्ति मुझे देंगे.
में भी ना उसे रख पाऊँगा,
दुर्योधन को दे जाऊँगा.
पांडव वंचित रह जाएँगे,
दुख से न छूट वे पाएँगे.
 
“अच्छा अब चला प्रमाण आर्य,
 हो सिद्ध समर के शीघ्र कार्य.
 रण मे ही अब दर्शन होंगे,
शार से चरण सस्पर्शन होंगे.
जय हो दिनेश नभ में विहरें,
 भूतल मे दिव्य प्रकाश भरें.”

रथ से रधेय उतार आया,
 हरि के मन मे विस्मय छाया,
बोले कि “वीर शत बार धन्य,
 तुझसा न मित्र कोई अनन्य,
 तू कुरूपति का ही नही प्राण,
नरता का है भूषण महान.”

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